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भुतहा मकान भाग - 5




भुतहा मकान भाग 5 : भूतों का हमला 

राजन ने दृढ निश्चय कर लिया था कि चाहे जो कुछ हो जाये, वह उस मकान में ही रहेगा । मनुष्य जब सिर पर कफन बांध लेता है तो मौत भी सौ बार सोचती है कि वह इस आदमी का वरण करे अथवा नहीं ? दृढ संकल्प वाले व्यक्ति को डराना असंभव होता है । फिर वह चाहे कोई भूत , प्रेत या कैसी भी दुष्टात्मा क्यों ना हो ? 

राजन अपनी बांयी ओर रहने वाले पड़ोसियों से तो मिल चुका था मगर दायीं ओर के पड़ोसियों से नहीं मिला था अभी तक । आज उसने उनसे मिलने का मन बना लिया । भूत राजा के साथ इनका कैसा अनुभव है , देखते हैं । ऐसा सोचकर उसने घंटी बजाई । 

दरवाजा एक बला की खूबसूरत लड़की ने खोला । राजन ने मन ही मन सोचा कि इस मकान के दायें और बांयें दोनों ओर "हुस्न की मलिकाएं" रहती हैं तो भूत का तो रहना बनता है यहां पर । इन हुस्न परियों पर तो कोई भी मुग्ध हो जाये ? तो भला भूत क्यों नहीं होगा ? हो सकता है कि भूत ने बीच के मकान को इसलिए ही चुना हो कि वह दोनों ओर के सौंदर्य रस का रसास्वादन कर सके ? राजन उस लड़की के सौंदर्य में खो गया । आखिर उस लड़की ने उसका ध्यान भंग करते हुए कहा 
"किससे मिलना है आपको" ? 
राजन का ध्यान तो कहीं और था इसलिए वह इस प्रश्न पर अचकचा गया । झट से बोल पड़ा 
"आपसे" 
"क्या" ? 

अब राजन को समझ आया कि हड़बड़ी में उससे गलती हो गई है । अपनी गलती सुधारते हुए बोला 
"मेरा मतलब है आपके पापा से" 

एक पल कुछ सोचते हुए वह लड़की उसे अंदर लिवा लाई और ड्राइंग रूम में बैठा दिया । तब तक राजन ने उसे बता दिया कि वह उनका नया पड़ोसी है । इतने में उसके मम्मी पापा भी आ गये । लड़की का नाम अंशी था । वह भी कोई जॉब करती थी । पापा दिनेश भंडारी सरकारी बाबू थे और मम्मी एक स्कूल में पढाती थी । 

राजन की हिम्मत की दाद देते हुए दोनों एक साथ बोल पड़े "बहुत हिम्मत वाले इंसान हैं आप । एक रात गुजारने के बाद भी अभी तक मकान खाली नहीं किया ? इससे आश्चर्यजनक बात और क्या हो सकती है ? यहां तो कोई एक रात भी नहीं टिकता है । कल रात उस "सिर कटे भूत" से मुलाकात नहीं हुई थी क्या" ? 
"हुई तो थी" 
"आपको डर नहीं लगा" ? 
"जी लगा था । बहुत डर लगा था । और डर के मारे मैं बेहोश भी हो गया था" 
"फिर भी आप इसे खाली नहीं कर रहे हो ? क्या घरवाली से इतने नाराज हो कि अपना जीवन उस भूत के हाथों समाप्त करने का मन बना चुके हो" ? उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा ।

राजन कुछ सोचते हुए बोला "वो मेरा पहला दिन था इसलिए मैं डरा था । मगर आज जब मैंने सोचा कि मौत तो एक न एक दिन आयेगी ही । और जब आयेगी तो वह किसी भी मकान में आयेगी । उसके लिए मकानों की कोई हद नहीं है । तो फिर क्यों न इस मकान में ही रहा जाये । देखते हैं कि मौत कब आती है" ? 

अंशी चाय की ट्रे लाती हुई बोली "अंकल, बहुत बड़ी रिस्क ले रहे हैं आप । बहुत खतरनाक भूत है वह । उससे पंगा मत लो । वो सामने वाले अंकल को दिख गया था एक बार । उसके गले पर नाखूनों से ऐसा वार किया था कि बड़ी मुश्किल से जिंदा बचे थे वे । वो तो उनकी किस्मत अच्छी थी कि जब भूत उन पर हमला कर रहा था तभी आस्तीन फट गई थी और उनकी बांह पर बंधा हुआ एक "ताबीज" भूत को दिख गया । उस ताबीज को देखकर वह भूत भाग गया अन्यथा पता नहीं क्या होता ? उसके बाद से भूत उनके सामने तो आ जाता है मगर बिगाड़ता कुछ नहीं है । ये सब उस ताबीज की ही करामात है । हम लोग भी अब तक उसी ताबीज से बचे हुए हैं , वरना हमारा भी हाल न जाने क्या होता" ? एक ही सांस में पूरी "भूत पुराण" पढ गई थी अंशी । 
उसके मम्मी पापा दोनों ने भी राजन को समझाने की कोशिश की कि वह यह मकान छोड़ दे , मगर राजन ने उस मकान में रहने का मन बना लिया था । बातों ही बातों में राजन ने पूछ लिया कि अंशी की शादी हो गई है क्या ? मिसेज भंडारी आह भरते हुए बोलीं "बात चल रही है एक दो जगह से । इसको कोई लड़का पसंद ही नहीं आता है । पता नहीं कैसा राजकुमार चाहिए इसे" ? मिसेज भंडारी ने अंशी की ओर देखकर थोड़ी नाराजगी के लहजे में कहा । उनका दर्द उमड़ कर बाहर आ रहा था । 

"आप फिर  से "शादी पुराण" लेकर बैठ गए मम्मा । मुझे नहीं करनी अभी शादी । जब करनी होगी तब पसंद कर लूंगी  । अब ठीक है" ? 
"क्या ठीक है ? पता नहीं कब करेगी तू शादी । जब तक हम जिंदा रहेंगे या नहीं , पता ही नहीं है" । 

माहौल थोड़ा सा तल्खी भरा हो रहा था । एक कुशल मध्यस्थ की तरह राजन ने कहा "जब शादी का मन नहीं है तो जबरन क्यों करनी चाहिए शादी ? जब इच्छा होगी तब कर लेंगी । अब शादी की कोई ऊपरी उम्र तो निर्धारित है नहीं , इसलिए जब मन करे कर लो शादी । इसमें इतना चिंतित होने की कोई बात नहीं है" । राजन का अंशी का पक्ष लेते हुए बोला । इससे अंशी भी खुश हो गई मगर मिसेज भंडारी को बड़ा नागवार लगा । विरोध करते हुए वे बोलीं 
"जिसके घर में बेटी हो, वही समझ सकता है यह पीड़ा । और कोई नहीं । इसलिए आप क्या समझेंगे" । 

इस तरह शादी की बात पर पूर्ण विराम लग गया । राजन भी वहां से आ गया । अब उसे सामने वाले मकान में जाना था जिस पर भूत ने हमला किया था । एक बार उससे मिलकर पूरा वाकया जानना था राजन को । 

सामने वाले मकान में लालवानी जी रहते थे । जूतों के व्यवसायी थे । राजन जब उनके मकान पर पहुंचा तब मिसेज लालवानी घर में अकेली थीं । उनके पति और दोनों बेटे जूतों की दुकान पर थे । 

राजन ने अपना परिचय दिया तो मिसेज लालवानी ने उनकी हिम्मत की दाद दी । राजन जानना चाहता था उस घटना को कि किस तरह उस भूत ने उनके पति पर हमला कर दिया था 

मिसेज ललवानी बताने लगीं "रोज रात को दस बजे के करीब दुकान बंद करके आते हैं बाप बेटे । एक दिन इनको कोई काम आ गया और ये कहीं चले गये । लौटने में देर हो गई और रात के लगभग साढे बारह बज गये थे । जैसे ही वे मकान के नजदीक आये , उनकी निगाह सामने वाले मकान यानी आपके मकान पर गई । तब क्या देखते हैं कि सामने वाले मकान के गेट पर दो सिर कटे भूत खड़े हैं जो आपस में धीरे धीरे बात कर रहे थे । ये डर गये मगर जैसे तैसे इन्होंने आवाज लगाई "कौन है वहां " ? इतने में दोनों भूत इन पर टूट पड़े । वो तो भला हो उस ताबीज का जिसने इनके प्राण बचा दिए , वर्ना न जाने क्या कर जाते वे भूत उस दिन" ? मिसेज लालवानी के चेहरे से खौफ स्पष्ट  झलक रहा था । 

राजन ने उस ताबीज के बारे में जानना चाहा तो मिसेज लालवानी ने नीलू जी का नाम ले दिया और कहा कि "यह ताबीज उन्होंने ही बनवाया था । आप भी उनसे मिलकर एक ताबीज बनवा लो फिर ये भूत आपका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा" । 

राजन सोच में पड़ गया और अपने घर आ गया । 

क्रमश : 

हरिशंकर गोयल "हरि" 
5.7.२२




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6 Comments

Shrishti pandey

13-Jul-2022 08:11 AM

Very nice

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Abhinav ji

07-Jul-2022 08:29 AM

Nice

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Punam verma

07-Jul-2022 07:51 AM

Very nice

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